श्री चंचल प्राग मठ - परिचय एवं इतिहास 

श्री चंचल प्राग मठ के सभी महंत और मठाधीश मेघवंशी रहे हैं। लेकिन इस मठ के भक्त हर जाति-वर्ग से है। इस मठ के पहले महंत पूज्य योगी श्री प्रागनाथ जी महाराज हुए। जिनका जन्म बाड़मेर के आटी गांव में हुआ। बचपन में माता-पिता  के निधन बाद वैराग्य उत्पन्न हुआ। आबू पर्वत में गौमुख के नीचे एक गुफा में 14 बरसों तक कठोर तप किया। बाद में बाड़मेर के सिणधरी में स्थित शिव मठ में आकर रहे। वहीं महंत श्री दयानाथ के शिष्य बने। एक दिन शिष्य योगी प्रागनाथ ने अपने गुरू को अपने पूर्व जन्म के बारे में बताया। बाद में पास ही के गांव नोसर चलने को कहा। गुरू को लेकर नोसर पहुंचे और जहां पूर्व जन्म में रहते थे, उस स्थान की खुदाई करने को कहा। खुदाई में शिव उपासना के त्रिशुल, चिमटा और शंख मिले। बाद में वहां मठ का निर्माण करवाया गया। बाद में आपने वैशाख सुदी पुर्णिमा विक्रम सवंत 1962 में समाधि ग्रहण की।  नौसर मठ की कीर्ति चारों ओर फैलने लगी। बाड़मेर के लोगों ने भी सोचा कि क्यों न हमारे शहर में भी मठ की स्थापना हो। तत्कालीन बाड़मेर जागीरदार हीरासिंह जी, जो धार्मिक प्रवृति के इंसान थे। उन्होंने नौसर मठ के महंत श्री प्रागनाथ जी से इस बारे में निवेदन किया। महंत जी ने इस काम के लिए अपने शिष्य प्रेमनाथ जी को चुना। पहाड़ी की तलहटी में मठ के स्थान का चयन किया, जहां आज ये मठ बना हुआ है। स्थानीय भाषा में इसे मड़ी भी कहते है। प्रेमनाथ जी ने विक्रम संवत 1960 के करीब मठ की प्रतिष्ठा की। चंचल प्राग मठ के वर्तमान मठाधीश श्री शम्भुनाथ जी महाराज है। आपका जन्म विक्रम संवत 2018 आषाड शुदी 12, वार मंगलवार को गांव महाबार, पीथल में मेघवाल परिवार में हुआ। महाराज चंचलनाथ जी ने ही आपका नाम शम्भु रखा। संवत 2040 में पूज्य महंत श्री चंचलनाथ जी के समाधिलीन होने पर श्री शम्भुनाथ जी महाराज मठ के मठाधीश बने। दलित और दरिद्र के प्रति आपका प्रेम, सौम्य व्यवहार लोगों पर काफी प्रभाव छोड़ता है। आध्यात्म के क्षेत्र में आपने अपने तप से जन कल्याण के कई काम किए और करते जा रहे है। समाज में समरसता बनी रहे, लोगों में मदद का भाव रहे और सबके विकास के लिए आप सदैव तत्पर रहते है। इस मठ के प्रति लोगों की गहरी आस्था है। मठ के प्रांगण में एक आध्यात्मिक शांति का आप अनुभव करेंगे।